अपने हाथों की लकीरों में तुझे ढूँढता रहता हूँ












अपने हाथों की लकीरों में तुझे
ढूँढता रहता हूँ

तू मेरा शरीक-ए-सफ़र न सही
अनजान राहगीरों में तुझे
ढूँढता रहता हूँ

मैं तो खो गया हूँ खुद
तेरे राहों में कहीं
मुझको अपना ही पता
इन दिनों मालूम नहीं

हर्फ़-ए-दु'आ-ए-फकीरों में तुझे
ढूँढता रहता हूँ

तू जुस्तजू है और तू ही हासिल है
तू ही चारागर, तू ही मरज़ ए दिल है
तू ही सफर है, तू ही मंज़िल है
तू ही लहर है, तू ही साहिल है

मुल्क-ए-ख़ुदा हर तस्वीरों में
तुझे ढूढ़ता रहता हूँ..।


शरीक-ए-सफ़र : हमराही, किसी सफ़र में शामिल व्यक्ति
मुल्क-ए-ख़ुदा : ख़ुदा की बनाई हुई दुनिया




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