अब आदमी ही जंगली बनता जा रहा है



जंगल कटता जा रहा है
शहर बढ़ता जा रहा है

जंगली जानवर कैद में है
अब आदमी ही जंगली
बनता जा रहा है

खुदा ने तो फलक बनाई थी
ओले - अब्र बरसाने को
इजाज़त किसने दी तुम्हें
शोले और कब्र बरसाने को

जमीं तो उसने बनाई थी
मोहब्बतों के वास्ते
फिर कैसे नफरतों का यहाँ
मकां बनता जा रहा है

नफरत भरी निगाहों में
खुशियों के ख़्वाब सजाये
नहीं जा सकते
बारूदों के ढेर पर कभी
अमन के फूल खिलाये
नहीं जा सकते

ये जहाँ तो उसने बनाई थी
इंसानियत के बास्ते
फिर हैवानियत का कैसे
नया जहाँ बनता जा रहा है

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