यूँ तो नज़्म मोहब्बत के
लिखना चाहती है मेरी क़लम
चराग़ ए मोहब्बत दिलों में जलाने के लिए
किसी शम्मा के लिए , किसी परवाने के लिए
मोहब्बतों के गुल, गुलशन में खिलाने के लिए
अपने दिल की अफ़साने ही सुनाने के लिए
पर जाने क्यू आज
लफ्ज ए उल्फत लिखते वक़्त
ये क़लम रुक सी जाती है
लिखना चाहती है मेरी क़लम
चराग़ ए मोहब्बत दिलों में जलाने के लिए
किसी शम्मा के लिए , किसी परवाने के लिए
मोहब्बतों के गुल, गुलशन में खिलाने के लिए
अपने दिल की अफ़साने ही सुनाने के लिए
पर जाने क्यू आज
लफ्ज ए उल्फत लिखते वक़्त
ये क़लम रुक सी जाती है
याद कर अमर शहीदों को
उनकी एहतिराम ए शहादत में
ये झुक सी जाती है
याद आ जाता है इसे पुलवामा का मंज़र
दुश्मन के साजिश का वो दहशत मंज़र
सामने से लड़ता नहीं बुजदिल वो कभी
हर बार चलाता है पीठ पर खंजर
अमर शहीदों के शहादत की तारीखे भी
अमर शहीदों ने अपने ही नाम कर लिया है
उनकी शहादत को याद कर आज मेरी क़लम
उनकी जाबांजी को दिल से सलाम कर लिया है
उनकी एहतिराम ए शहादत में
ये झुक सी जाती है
याद आ जाता है इसे पुलवामा का मंज़र
दुश्मन के साजिश का वो दहशत मंज़र
सामने से लड़ता नहीं बुजदिल वो कभी
हर बार चलाता है पीठ पर खंजर
अमर शहीदों के शहादत की तारीखे भी
अमर शहीदों ने अपने ही नाम कर लिया है
उनकी शहादत को याद कर आज मेरी क़लम
उनकी जाबांजी को दिल से सलाम कर लिया है
एहतिराम ए शहादत : शहादत के सम्मान
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