टूट न जाये सदियों से टिकी रिश्तों की ये दीवारों कहीं

 
































यकीं के ईंटों को बचाये रखे
बुनियादों में महफूज़ यूँ ही

जिंदगी के दौड़ में पड़ न जाये
शक़ वो नफऱत की दरारें कहीं

दिखती नहीं कभी बाहर से
बड़ी नाजुक होती है अंदर से
फ़क़त लब्ज़ों के हल्के चोटों से
 
टूट न जाये सदियों से टिकी
रिश्तों की ये दीवारों कहीं

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