नकाबों के इस शहर में
मैं कैसे चेहरा पढ़ा करू
कौन दिल के इतना करीब है
ये शहर कितना अजीब है
चेहरों पे यहाँ एक चेहरा है
आईनो में जो बे -चेहरा है
बाहर से गुलशन के माफ़िक़
अंदर से तो बस सहरा है
ये समझना बड़ा ही मुश्किल है
की वो दोस्त है की रकीब है
ये शहर कितना अजीब है
पैसा ही है भगवान यहाँ
रुपयों से होती परस्तिश है
इंसान का कोई क़द्र नहीं
ज़मीर की बोली लगती है
कपड़ो से तो दिखते आमिर है
पर दिलों से वाकई गरीब है
ये शहर कितना अजीब है
इन्हे खुदा का कोई खौफ नहीं
खुद को ही ख़ुदा समझते है
ऐसे तो वे लगते फ़रिश्ते है
वैसे उनके कई रिश्ते है
यकीं जो करें तो किस पे करें
क़ातिल भी दीखता हबीब है
ये शहर कितना अजीब है
हर चेहरे में एक चेहरा ढूंढता हूँ मैं
चेहरों पे यहाँ एक चेहरा है
आईनो में जो बे -चेहरा है
बाहर से गुलशन के माफ़िक़
अंदर से तो बस सहरा है
ये समझना बड़ा ही मुश्किल है
की वो दोस्त है की रकीब है
ये शहर कितना अजीब है
पैसा ही है भगवान यहाँ
रुपयों से होती परस्तिश है
इंसान का कोई क़द्र नहीं
ज़मीर की बोली लगती है
कपड़ो से तो दिखते आमिर है
पर दिलों से वाकई गरीब है
ये शहर कितना अजीब है
इन्हे खुदा का कोई खौफ नहीं
खुद को ही ख़ुदा समझते है
ऐसे तो वे लगते फ़रिश्ते है
वैसे उनके कई रिश्ते है
यकीं जो करें तो किस पे करें
क़ातिल भी दीखता हबीब है
ये शहर कितना अजीब है
हर चेहरे में एक चेहरा ढूंढता हूँ मैं
सहरा -रेगिस्तान
परस्तिश - पूजा, इबादत, बहुत अधिक स्नेह और प्रेम
रकीब - दुश्मन
हबीब -दोस्त
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