वक़्त ही जीतता रहा जिंदगी के हर मोड़ पर




वक़्त ही जीतता रहा 
जिंदगी के हर मोड़ पर
हम फ़क़त दाँव पे दाँव चलते रहे

तलाश थी नहीं किसी
 मंज़िल ए मकसूद की
बंजारे तो यूँ ही शहर - गांव बदलते रहे

मुसाफिर ने दिल से
कुबूल की, जो भी
राह- ए- जिंदगी में धुप - छांव मिलते रहे






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