आशाओं की नई किरणों में नहा रही है जिंदगी

 

















कारखानों में लोहे के संग 
सदियों से लड़ रही है जंग
पत्थरों को तोड़कर कहीं 
पहाड़ों में बना रही सुरंग 
अपने पसीने को पानी बना 
नहा रही है जिंदगी 

कहीं जंग के मैदान में 
कहीं तपती रेगिस्तान में 
धरती के गोद में छुपी 
हर खान में खदान में 
क़तरा - क़तरा अपने लहू का 
बहा रही है जिंदगी 

कहीं भूख से बिलख रही 
कहीं दर्द में सिसक रही 
जीने की आरजू लिए
आंसू बनके छलक रही 
है चल रही ये भीड़ में 
पर तनहा है जिंदगी 

नहीं रुक रही बस चल रही  
गिरकर भी  ये संभल रही 
हर हाल में हर दौर से
ये जीतकर निकल रही 
आशाओं की नई किरणों में  
नहा रही है जिंदगी 



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