कुछ दिनों से मै बेकाम हूँ
बेकार हूँ ,इसलिए बेज़ार हूँ जिंदगी थम सी गई है चारो तरफ
सन्नाटा ही सन्नाटा है पसरा हुआ
जहाँ गूंजती थी किलकारियां बच्चों की
अब वहाँ बिराने का पहरा हुआ
हर तरफ खौफ है, दहशत भी है
नम आँखों में कुछ हो जाने का
दिलों में फिक्र है दर्द भी है
अपनों के खो जाने का
क्या गांव क्या शहर क्या बस्ती
डूब गई इसमें कितने जीवन की किश्ती
सब कहते है अब तो
हवा में भी जहर है
डर लगता है आनेवाला
क्या प्रलय का तीसरा लहर है
जद्दोजहद में आज भी हाकिम
लगे है जिंदगियाँ बचाने में
उजड़ गई वो गुलशन
सदियाँ लगी थी जिसे बसाने में
उम्मीद की आखिरी किरण
भी अब फना सी हो गई है
कहाँ छुपा बैठा है पासबाँ
क्यू नहीं अपनी रहमत दिखाता
क्या उसकी कज़ा भी सो गई है
हे फलक के फ़रिश्तो
मेरे दर्दे दिल की फ़रियाद
सुन सको तो सुनो
इतना नातार्श न बनो
कोई जादू करो कोई चमत्कार कर दो
बहुत हो चुका बर्बादिओं का ये मंज़र
अब तो इस जहान के बाग़ को
अपने रहमो -करम से गुलजार कर दो
बेज़ार - निराश, नाख़ुश, ख़फ़ा,
पासबाँ - रक्षक
क़ज़ा - न्याय; इनसाफ़
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