ख़ुदा की सम्त अब ख़याल-ए-यार लगता है

 


बंदा-ए-'इश्क़ को हरपल
बिसाल-ए-यार लगता है
शब-ए-हिज्र का दर्द भी 
जमाल-ए-यार लगता है

सबात-ए-'इश्क़ को मेरी
वो मक़ाम  हासिल  हुई
कि ख़ुदा की सम्त अब
ख़याल-ए-यार लगता है



जमाल-ए-यार -अपने प्रिये कि सुंदरता 
सबात-ए-'इश्क़ - प्यार की ताकत
सम्त - ओर, तरफ़




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Anything to comment regarding the article or suggestion for its improvement , please write to me.