ए दिल-ए-बे-क़रार, तमाम उम्र तुमने अपनी मोहब्बत का इंतज़ार किया

 

बिना सोचे समझे ख़ुद ही तुमने  
पहले  खेल- खेल में प्यार किया
जोश - जोश में कश्ती ए इश्क़ में 
खुद को फिर तुमने सवार किया 

ज़ज़्बा ए इश्क़ को अंदर अपने
न रख सके दबाकर तुम एक पल 
इधर इश्क़ हुई नहीं की  तुमने  
फ़ौरन  इश्क़ का इज़हार किया 
 
मौज ए इश्क़ के चक्कर में तुमने 
अपनी धड़कनो को रफ़्तार किया 
राह- ए- इश्क़ में मेरी एक न सुनी
इश्क़-ए-इलाही पर ही ऐतबार किया

शब-ए-वस्ल के लम्हों में तो 
खुद को तुमने गुलज़ार किया
हिज़्र की तन्हाई में मगर तुमने   
बेसबब खुद को बेज़ार किया

जा-ब-जा गुलों के मोहब्बत में  
जू-ब-जू  तुमने जाँ-निसार किया
खुद को मंज़िलों  की चाहत में 
बे-क़रार किया खाकसार किया

हर दर्द को छुपाते रहे ख़ुद में 
शबनमी अपने अबसार किया 
ए दिल-ए-बे-क़रार, तमाम उम्र तुमने
अपनी मोहब्बत का इंतज़ार किया



मौज - 
लहर
इश्क़-ए-इलाही -सत्य प्रेम, दिव्य प्रेम,
शब-ए-वस्ल -मिलनरात्रि
जा-ब-जा -हर स्थान और हर अवसर पर
जू-ब-जू - संपूर्ण, समग्र, पुरा
अबसार -आँखे 

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