प्यास के हद तलक जाकर तो देखो

 



प्यास के हद तलक जाकर तो देखो
जूनून-ए-इश्क़ आज़मा कर तो देखो
ख़जाने ख़ुद-ब-ख़ुद ऊपर नहीं आते
समंदर में ख़ुद को डूबाकर तो देखो
 

मिल ही जायेगा वो तुमसे किसी रूप में
सच्चे दिल से उसे तुम बुलाकर तो देखो
मुसलसल उसे क्यू दर-ब-दर  ढूंढते हो
अपने दिल में ख़ुदा को बसाकर तो देखो


चलो इंसानियत को ही मज़हब बना ले
मज़हबी सारी दीवारे गिराकर तो देखो
न रूह न पैकर न लहुँ का है मज़हब
दिल से फ़िरक़ा-परस्ती मिटाकर तो देखो


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Anything to comment regarding the article or suggestion for its improvement , please write to me.