पास रहकर जुदा सा रहता है
इंसा है मगर ख़ुदा सा रहता है
नज़रों में उसके मेहरबानी ज्यादा है
सरगिरानी भी ज़रा सा रहता है
मस्तूर आँखों में है समंदर कोई
मरासिम कोई सहरा सा रहता है
चराग़-ए-वहशत जो हो गई बेकाबू
दश्त-ए-दिल में आग बरपा सा रहता है
चराग़- ए-वफ़ा बुझ गई फिर भी
पुर-ख़ुलूस दिल आश्ना सा रहता है
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