चाहे जब जिस घडी
मुझमें वो आ जाती है
और लिख जाती है
अपने दिल की बात
पोशीदा मेरे हर
लब्ज़ में शामिल है वो
फ़क़त उसकी बेताबियाँ
ही अशआर बनकर
मेरे क़लम के जुबां
से निकल जाती है
दौर-ए-हर्फ़ मैं तो उसे
बस निहारता रहता हूँ
हर्फ़-दर-हर्फ़ वो
खुद-ब-खुद ही
नज़्मों - ग़ज़लों
में ढल जाती है
फ़क़त उसकी बेताबियाँ
ही अशआर बनकर
मेरे क़लम के जुबां
से निकल जाती है
दौर-ए-हर्फ़ मैं तो उसे
बस निहारता रहता हूँ
हर्फ़-दर-हर्फ़ वो
खुद-ब-खुद ही
नज़्मों - ग़ज़लों
में ढल जाती है
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