घर तो अब लगता है मुझे



घर तो अब लगता है मुझे
कुछ ईट - पत्थरों से बना 

चार कमरों का 
वो सदियों पुराना मकां

जिसमें सारा परिवार 
मिल जुलकर 
अब भी रहता है


मगर जब तलक
माँ - बाबूजी रहें उसमे
वो घर , घर नहीं

किसी ज़न्नत की
तरह लगता था मुझे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Anything to comment regarding the article or suggestion for its improvement , please write to me.