गुलों के संग रहती है वो

 

गुलों के संग रहती है वो
बहारों से उसका रिश्ता है
फ़ज़ाओं में हम उसकी
खुशबू से उसे पहचानते है

ख्वाबों- ख्यालों में ही वस्ल 
हो पाती है मगर उससे मेरी 
मेरी शायरी के जानिब से 
चंद लोग ही उसे जानते है 

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