हर्फ़-ए-दु'आ ही निकलती थी



हर्फ़-ए-दु'आ ही निकलती थी
माँ ग़र ख़फ़ा भी होती थी

और कभी मार देती यूँ ही मुझे
तो माँ भी मेरे संग रोती थी

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