तमाम रिश्तों से मिली इस


तमाम रिश्तों से मिली इस
दिल को रुसवाई चली आती है

शाम होते ही मकां ए दिल में
ग़म-ए-तन्हाई चली आती है

दर ब दर सारा दिन गुजार कर
फिर चंद उम्मीदों का गला घोंटकर

ख़्वाहिशों के बोझ तले जिंदगी
यूँ ही थकी - थकाई चली आती है

 

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