सफ़्हा- सफ़्हा रिसाले यादों के



सफ़्हा- सफ़्हा रिसाले यादों के
मेरे कमरे में बिखरने लगे
गुजरे लम्हे विसाल ए यार के
सामने नज़रों के गुजरने लगे

जख्म सारे जो दफ़्न थे मिले
राह ए मोहब्बत में दिल को
बारिश के इन झोकों से
दिल पर फिर उभरने लगे

चराग़ जलता रहा तनहा
मेरे कमरे का रात भर
रफ़्ता रफ़्ता वो अश्क बनकर
मेरे आँखों से उतरने लगे

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