वतन की बेटियां खो जाएगी

जाने कब कहाँ किस भेष में 
हर कहीं फिर रही है दरिंदगी 
जाने क्यू वतन से मेरे 
अब नहीं जा रही ये गंदगी 

बेटियों के साथ हर पल 
हो रहा कहीं अन्याय है 
मर गई है इंसानियत कहीं 
और सो रहा कहीं न्याय है 

गुज़ारिश है सियासत -दानो से 
इसपर  न करे सियासत कोई 
बेटियों के कातिलों पर 
अब न करे मुरव्वत कोई 

ग़ुल ही जल जायेंगे जब 
ये गुलशन फ़ना हो जाएगी   
ग़र रुकी न ये दरिंदगी 
वतन की बेटियां खो जाएगी 



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