जुगनू परिंदे
कश्ती किनारा
सहरा समंदर की
बाते मै करता हूँ
माहताब से दिल की
यारी है अपनी
सितारों के महफ़िल से
फिर भी मुकरता हूँ
क़लम का मुसाफ़िर हूँ
तसव्वुर के राहों पर
दर्द ओ ग़म के मुसलसल
हदों से गुजरता हूँ
ख्वाबो में जीता हूँ
ख्वाबों में मरता हूँ
ख़ुदा के हुनर को
आज़माने के ख़ातिर
रूह से ज़ीस्त तक को
हरपल ख़ाक करता हूँ
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