क्यूं मुझे देख के भी नज़रें, तुम मिलाते ही नहीं
आजकल ख़्वाबों में पहले की तरह आते ही नहीं
अब यहाँ कौन मेरा दर्द है समझनेवाला
ज़ख्म भी दिल में दबे हैं, लबों पे आते ही नहीं
आजकल ख़्वाबों में पहले की तरह आते ही नहीं
अब यहाँ कौन मेरा दर्द है समझनेवाला
ज़ख्म भी दिल में दबे हैं, लबों पे आते ही नहीं
बस अँधेरा ही अँधेरा है दिल की बस्ती में
रौशनी गुम सी है तारे भी जगमगाते ही नहीं
मैं सफर में हूँ या फिर कोई सफर ही है मुझमें
ये कैसे रास्ते है किसी मंज़िल तलक जाते ही नहीं
जिंदगी तुझसे शिकायत है ,तो बयां किससे करे
दर्द अपनों से जो मिले है ,दिल से जाते ही नहीं
दर्द का रिस्ता ये तुझसे है मोहब्बत का नहीं
उसकी मर्ज़ी थी वरना तुझसे मिलाते ही नहीं
दर्द का रिस्ता ये तुझसे है मोहब्बत का नहीं
उसकी मर्ज़ी थी वरना तुझसे मिलाते ही नहीं
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