ग़ज़ल : राह-ए-हयात में कहीं तुझसे बिछड़ न जाये

 


राह-ए-हयात में कहीं
तुझसे बिछड़ न जाये
तुझसे जुदा जो कर दे
वो रहगुज़र न आये

बड़ी धुंध है सफर में
मेरे साथ- साथ रहना
मेरा हाँथ थामे रहना
ग़र हम नज़र न आये

अभी दूर है मंज़िल मग़र
यकीं के चराग़ बुझे नहीं
अंधेरों से ग़म के डरके
कहीं हम ठहर न जाए

ग़ुम हो गई कई कश्तियाँ
इन्हीं लहरों के आगोश में
किनारे के आने से पहले
कोई फिर लहर न आये





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