बशर अपनी आदतों से अब तू बाज़ आया कर



बशर अपनी आदतों से
अब तू बाज़ आया कर

बहरा हो जाये ग़र ख़ुदा
तो गुहारें मत लगाया कर

मकीं हो ग़र मकाँ में
तो बेशक़ आवाजे दे हज़ार 

ताले जड़े दरवाजों को तो 
रात दिन मत खटखटाया कर

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