खो गया इस क़दर हुजूम-ए-दहर में
रह गया बेख़बर ख़ुद से उम्रभर मै
रह गया बेख़बर ख़ुद से उम्रभर मै
मिला न कोई जब ख़ुदा इस सफ़र में
ठोकरों को बनाया अपना राहबर मै
बंजारों की तरह रहा रहगुज़र में
बदलता रहा शहर-दर-शहर मै
मंज़िलों ने चाहे मुझसे मुँह फेर ली पर
बदलते मौसमों से हरपल रहा बे-असर मै
नहीं सिख पाया ख़ास जीने की हुनर मै
ख़ुदा के रहमत पर ही कर लिया बसर मै
दिल की बातें है यारों शे'र तुम न समझना
किताब- ए- जिंदगी अपनी कह दी मुख़्तसर में
हुजूम-ए-दहर- दुनिया की भींड
राहबर- रास्ता दिखाने वाला
मुख़्तसर- थोड़ा, संक्षिप्त
रहगुज़र - रास्ता
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