हम इंसानो को बनाकर ख़ुदा ने कोई बड़ी भूल कर दी है



बाँट दिया सारे जहाँ को इंसा ने
अपने मजहबी दीवारों से

शर्मशार है इंसानियत
हर रोज के मुल्कों की तकरारों से

बाँझ सी हो गई है अब ये धरती
इन जंग और एटमी हथियारों से

ख़ुदा तू ही बचा इस जहां को
इंसानियत के गुनहगारों से

सदियों ने बसाया था एक
गुलिश्तां सा शहर
महज़ चंद लम्हों ने उसे धूल कर दी है

ऐसा लगता है मानो
हम इंसानो को बनाकर
ख़ुदा ने कोई बड़ी भूल कर दी है

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