एक लम्बे डगर पे जिंदगी तुझे चलना है
थोड़ी दूर छांव है फिर धुप में तुझे जलना है
हर तरफ भीड़ है इस भीड़ से निकलना है तुझे
हर कदम पर तुझे गिरना है फिर संभलना है
सब मुसाफ़िर है तेरे साथ इस सफ़र में यहाँ
तुझको तनहा ही अपनी मंज़िले बदलना है
वक़्त जो बीत गया लौट कर न आएगा
कल की उम्मीदों से तुझको यहाँ बहलना है
थी सुहानी सुबह अब दोपहर की गर्मी है
आएगी शाम हसीं जब तुझे फिर ढलना है
ग़म की तस्वीरों को खुद ही तुझे बदलना है
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