झील नदियां पहाड़ जंगल
पर सारा शहर ये एक तरफ
और उसका घर एक तरफ
उससे बाते जब भी करना
नज़रें न मिलाना तुम
बातों का असर एक तरफ
और आँखों का असर एक तरफ
उसकी अदा जैसे बाद-ए-सबा
पल में वफ़ा और पल में ख़फ़ा
उसके वफ़ा का मंज़र एक तरफ
और जफ़ा का खंजर एक तरफ
हर बात मुसलसल करती है
हर लब्ज़ मोहब्बत है उसके
होठो पे दुआ आँखों में हया
नज़रों में 'इनायत है उसके
अहल-ए-दिल वो हमसफ़र एक तरफ
"बशर" ये हयात-ए-मुख़्तसर एक तरफ
उसके क़ुर्बत में मेरी
सब भूख -प्यास खो जाती है
पर उसके शहर से जाते ही
गलियाँ उदास हो जाती है
तीर-ए-वस्ल का शाम-ओ-सहर एक तरह
शब्-ए-हिज़्र का ग़म-ओ-कहर एक तरफ
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