मैंने भी सारा मकाँ उसके नाम लिख दिया


रौशन किया जब उसने मेरे
सूने से इस मकाँ-ए- दिल को
तो मैंने भी उसे अपना
माह-ए-तमाम लिख दिया

पर रहकर कुछ दिन इसमें
उसने जब तोड़ दी इस मकाँ को
फिर मैंने भी ये शिकस्ता - मकाँ
उस सितमग़र के नाम लिख दिया


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