आसमां पे चमकने के लिए

 

आसमां पे चमकने के लिए
आफ़ताब को भी रोज जाने
कितनी सीढियाँ चढ़ना उतरना पड़ता है

बशर' ये बाग़ ए बहिश्त नहीं
दश्त-ओ-सहरा है कोई
यहाँ खुद को रौशन करने के लिए
हर शय को मुश्किलों से गुजरना पड़ता है

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