मुझे बचाने की कोशिश में
मेरे दर्द-ए-ग़म की दवा
तो बनी ही नहीं
क्यूं मर्तूब आँखों से
छलक रही शबनम की बूंदें
बाबस्ता-ए- गम मैंने अभी तक
कोई ऐसी बात कही ही नहीं
गोया आज कल तो कोई काम ही नहीं
मेरे पास नज़्म ए मोहब्बत करने के सिवा
कोई जाजिब सी जगह बची ही नहीं
शहर -ए -गुलिश्तां में कहीं
हसरत ए दिल को एक पल के लिए
दिल ए 'इशरत भी मिल जाये जहां
कैसा जहर छाया है हवाओं में
शहर की आबो -हवा
पहले सी अब रही ही नहीं
मर्तूब - भीगा हुआ
बाबस्ता-ए- गम - ग़म से सम्बन्धित
जाजिब -आकर्षित करने वाला
'इशरत- ख़ुशी, आनंद, चैन,
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