बारिश के रिमझिम मौसम में

 

बारिश के रिमझिम मौसम में
भींगे-भींगे से इस  'आलम में

गुलशन की महकी फिज़ाओ में
बहकी-बहकी सी इन हवाओ में

यादें तेरी यूँ आने लगी
दिल को मेरे तड़पाने लगी

सावन की बुँदे बरस रही 
नैना मिलने को तरस रही 

अधरों पे प्यास एक रुकी हुई 
पलकों पे आस एक टिकी हुई  

है बिरह में दिल ये जलने लगा 
आहें सांसो में है पिघलने लगा

ये वक़्त कहीं न निकल जाये 
ये मौसम कहीं न बदल जाये 

हसीं पल न कहीं ये गुजर जाये 
ये बादल फिर जाने किधर जाये 

यादों के झरोखे से आ जाओ  
तुम हवा के झोके से आ जाओ

इस तन-मन को अपना बना जाओ 
मेरे सावन को सुहाना बना जाओ 
















कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Anything to comment regarding the article or suggestion for its improvement , please write to me.