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वो निर्मोही कान्हा तुमने
कितनों के दिल तोड़े
छलिया बनकर रास रसाये
ग्वालन के मटकी फोड़े
जन्म लिए तुम कारागृह में
और कंस की सेना सोती रही
माँ देवकी तुमसे बिछड़कर
मन ही मन में रोती रही
बाबा नन्द जब पार किये
यमुना भी चरणों को धोती रही
माँ यशोदा के लल्ला बने
गोकुल के बन गए छोरे
बचपन में की माखन चोरी
ग्वाल बालो के संग में
गोकुल की गलियां भी रंग गई
कान्हा तेरे ही रंग में
मित्र सुदामा और सखा संग
तुमने की बाल क्रीड़ाये
बचपन से ही खेल खेल में
तुमने की बड़ी लीलाये
पूतना का उद्धार किया
कालिया नाग के घमंड तोड़े
मोर पंख बालो में लगाए
अधरों पे बांसुरी सजाये
यमुना तट पर गइयाँ चराये
ग्वाल बालो को सखा बनाये
ब्रज पर आन पड़ी जब आफत
गोवर्धन भी ऊँगली पे उठाये
सब में प्रेम का ज्योति जगाये
फिर गोकुल की गलियां छोड़े
वृंदावन की कुंज गलियों में
गोपियों के संग रास रचाये
बरसाने की राधा के संग
प्रेम का सच्चा अर्थ बताये
खुद को राधामयी बनाकर
राधा को कृष्ण्मयी बनाये
करके सबको प्रेम में पागल
कुंज गलियों से नाता तोड़े
पाप और अधर्म के बादलों ने जब
सत्य के सूरज का अपहरण किया
फिर मुरली वाले हाथों में
तुमने चक्र सुदर्शन धारण किया
तुम अर्जुन के सारथि बने
और गीता का तुम ज्ञान दिए
अधर्म पर धर्म की जीत हुई
नव भारत का निर्माण किये
धर्म का तुमने साथ दिया
अधर्म का सब अहंकार तोड़े
कितनों के दिल तोड़े
छलिया बनकर रास रसाये
ग्वालन के मटकी फोड़े
जन्म लिए तुम कारागृह में
और कंस की सेना सोती रही
माँ देवकी तुमसे बिछड़कर
मन ही मन में रोती रही
बाबा नन्द जब पार किये
यमुना भी चरणों को धोती रही
माँ यशोदा के लल्ला बने
गोकुल के बन गए छोरे
बचपन में की माखन चोरी
ग्वाल बालो के संग में
गोकुल की गलियां भी रंग गई
कान्हा तेरे ही रंग में
मित्र सुदामा और सखा संग
तुमने की बाल क्रीड़ाये
बचपन से ही खेल खेल में
तुमने की बड़ी लीलाये
पूतना का उद्धार किया
कालिया नाग के घमंड तोड़े
मोर पंख बालो में लगाए
अधरों पे बांसुरी सजाये
यमुना तट पर गइयाँ चराये
ग्वाल बालो को सखा बनाये
ब्रज पर आन पड़ी जब आफत
गोवर्धन भी ऊँगली पे उठाये
सब में प्रेम का ज्योति जगाये
फिर गोकुल की गलियां छोड़े
वृंदावन की कुंज गलियों में
गोपियों के संग रास रचाये
बरसाने की राधा के संग
प्रेम का सच्चा अर्थ बताये
खुद को राधामयी बनाकर
राधा को कृष्ण्मयी बनाये
करके सबको प्रेम में पागल
कुंज गलियों से नाता तोड़े
पाप और अधर्म के बादलों ने जब
सत्य के सूरज का अपहरण किया
फिर मुरली वाले हाथों में
तुमने चक्र सुदर्शन धारण किया
तुम अर्जुन के सारथि बने
और गीता का तुम ज्ञान दिए
अधर्म पर धर्म की जीत हुई
नव भारत का निर्माण किये
धर्म का तुमने साथ दिया
अधर्म का सब अहंकार तोड़े
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