बड़ी ग़ैर-जिम्मेदारी से उसने खिंच दी
महज़ कागज़ पर एक लकीर
और उसे सब तकदीर समझ बैठे
करोड़ों बेघरों और लाखों शवों के
खून से बँट गई नक्श-ए-हिन्दोस्तां
और उसे सब तहरीर समझ बैठे
कहीं बिलखते बच्चो और बेबस माताओं
कहीं बुझ चुकी कई जिंदगी की आशाओ
कहीं चीख पुकारों से गूंजती फ़ज़ाओं
तो कहीं अपनों के खोने की दर्द भरी सदाओं
के एवज में मिली कुछ जागीर
और मिली अनगिनत सिसकती साँसे
अनवरत आँशु और असीमित पीर
अफ़सोस दोनों मुल्कों के साहिब-ए-तदबीर
दिलों के दरम्यान खींची गई
इस लकीर पर मिली जागीर को
मख़लूत एहसासों से भरे दिल से
आज़ादी की नई तस्वीर समझ बैठे
तहरीर :- ग़ुलाम की आज़ादी और रिहाई
फ़ज़ाओं - हवा वातावरण माहौल
साहिब-ए-तदबीर - नीतिज्ञ, सियासत दाँ, बुद्धिमान्, अक्लमंद
मख़लूत - मिला-जुला, मिश्रित, मिला हुआ
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