गिरे थे कभी तुम
shayari and kavita is collection of Deshbhakti Shayari, Inspiratioal Shayari, Maa Shayari, Shayari on life, Rishte Shayari, Best Love Shayari,Romantic Shayari, Awargi Shayari Dil Shayari,Mausam Shayari, Ehsas Shayari Chand Shayari, Bachpan Shayari,Yaad shayari Sad Shayari, Mausam Shayari,Deshprem kavita Hasya byangya kavita, Maa par kavita, Romantic kavita, bachho ke kavita,Hindi Gaana ,Humorous poetry,Two Line Shayari,Gajal
गिरे थे कभी तुम जिन ठोकरों से
अज़ब दस्तूर है दोहरा
अज़ब दस्तूर है दोहरा
आधा पैमाना भी अपने लिए
आधा पैमाना भी अपने लिए
बहुत सोचकर करना आग़ाज़ ए मोहब्बत
बहुत सोचकर करना
बेक़रार है परेशां भी है
बेक़रार है परेशां भी है
सहरा ए ज़िस्म से होकर
सहरा ए ज़िस्म से होकर
तुझ बिन होली है ग़मगीन
पक गई गेहूं की बाली
दरख़्त टेशू की हुई रंगीन
लौट आओ परदेश से साजन
तुझ बिन होली है ग़मगीन
मश्ग़ला ए इश्क़ है ये
मश्ग़ला ए इश्क़ है ये
शम्'अ के लौ में तुझे
सरहदें रोक तो सकती है
एक अहल ए दिल हो ऐसी
ख़ामोशी का पहरा रहता है
मेरी चाहतों में जो होगा असर
मेरी चाहतों में जो होगा असर
तुझे लौटकर फिर आना ही होगा
जो वादा वफ़ा तूने मुझसे किया था
वो वादा वफ़ा फिर निभाना ही होगा
भुला न सकोगे वो चाहत की राते
लिखूंगा जब अश्को से मोहब्बत की बाते
तुझे नींद आएगी अब न मेरे बिन
मेरी वफ़ा का सिला जो दिया है
तुझे दर्द ए दिल अब सुनना ही होगा
न शिकवा शिकायत मै तुझसे करूँगा
सितमगर तुझे दिल से मोहब्बत करूँगा
चराग़ ए मोहब्बत जो बुझा दी है तूने
तुझे अपने हाथों से जलाना ही होगा
नेकी के राहगीरों का अज़ाब लिखा जायेगा
यूँ दरिया बनकर फिरने से
तड़प - तड़प के जाने दे दी
साज़िश वफ़ा में नज़र आ रही है
मेरे अशआर और ग़ज़लों में
जो बिछड़ना है तो फिर बात मुझसे
डालकर आदत वो क़ैद ए क़फ़स की वो अपनी
गुमसुम सा रहता हूँ महफ़िलों में मगर
गुमसुम सा रहता हूँ
मसर्रत मोहब्बत का उतरा अगर जो
वस्ल के एक पल को भी
दिल पस-ओ-पेश में है बशर
दिल पस-ओ-पेश में है बशर
बस यही बात उससे कहने में
मोहब्बत होने का डर रहता है
इस क़दर साथ - साथ रहने में
बेसबब ही नहीं हम बशर यूँ
यादों के झरोखे से बाहर
तेरे हिज़्र का एक भी लम्हा
सुन ए दुश्मन अभी नादान है तू
यूँ जो लिखते रहते हो तुम
एक अहल ए दिल है ऐसी
जवानी के दहलीज़ पर जब
गुजरकर नज़र से वादों के मंज़र
मुझे मालुम नहीं कि आकर क्यू
यूँ ही नहीं ए मौत तुझे
कैसे समझूँ की मुझे प्यार कर रहे हो तुम
तल्खियां दिल को मिली है
जो फ़ना हो कभी ना
जो फ़ना हो कभी ना
कर चुके शुमार मुझको
दरख़्त के सूखे पत्ते की मानिंद
ख़ारा न हो जाये उस दरिया का पानी
इस जहां में अम्न हो
तेरे निग़ाह से गिरकर बिखर न जाऊं मै कहीं
वाहिद ये किस मुक़ाम पर ले आई जिंदगी तुम
मेरे दर्द का था जो आश्ना
जुगनू परिंदे कश्ती किनारा
जुगनू परिंदे कश्ती किनारा
ऐब हो या कि हुनर हो मुझमे
ऐब हो या कि हुनर हो मुझमे
दाइम-उल-हब्स रिसालों के
कर चुके बर्बाद ख़ुद को
कर चुके बर्बाद ख़ुद को
हो चुकी इस दिल को मेरी
हो चुकी इस दिल को मेरी
अब है आदत आपकी
जाने क्यू जाती नहीं
इस दिल से चाहत आपकी
अश्क बनकर ख्वाहिशे मेरी
बरस जाती है इन आँखों से
उतर आते है यादों के बादल
दिल पर बे-निहायत आपकी
मैंने तो जो भी लिखा
है सब इनायत आपकी
करती है दिल की क़लम
हर पल इबादत आपकी
रगों में दौड़ती है शायरी
क़ुबूल कर चुके अपने सारे गुनाह
क़ुबूल कर चुके
अपने सारे गुनाह
मुंसिफ के सामने
दिल को गुमाँ है
तमाम उम्र बशर
रिहाई तो न होगी
दरमियाँ हो ग़र वादा - वफ़ा
दरमियाँ हो ग़र वादा - वफ़ा
फिर तोडा नहीं जाता
राह ए मोहब्बत में यूँ ही
बशर, छोड़ा नहीं जाता
हर बार लगा दिल को ये आखिरी मोहब्बत है
ये कैसा रब्त है तुझसे जो मेरे रूह से वाक़िफ़ है
रफ़ाक़त रखते है शज़र से फ़क़त वो सहर होने तक
वक़्त से कह दो बशर
वक़्त से कह दो बशर गुजरे मगर आहिस्ता
सर झुके जिससे वतन का
जबतलक सांसे है मुझमे
जो सांसे भेजता है मुझे शब-ओ-रोज़
जो सांसे भेजता है
मुझे शब-ओ-रोज़
मै काम उसी का कर रहा
जिस राह से वो कह रहा
उस राह से मै गुजर रहा
मै छलक रहा वो भर रहा
मुझे ख़ाकसार वो कर रहा
करामात से उसके मगर
दिन रात मै बेख़बर रहा
फिर जुस्तजू को कहता वही
इन्ही आरजू और जुस्तजू में
ये जिंदगी दर- ब- दर रहा
निकाला था जिन्हे किसी नाख़ुदा ने
ग़ुम रहता हूँ इस क़दर
ग़ुम रहता हूँ इस क़दर
तेरी यादों में जान ए जां
डरता हूँ सर ए महफ़िल
लबों पर तेरा नाम न आ जाये
मिला कर ख्वाबों ख्यालों में
यूँ ही आ कर तू मेहर बां
तेरे दामन पर मेरे ख़ातिर
कहीं कोई इल्जाम न आ जाये
वा'इज़ को गुमाँ है
सियाह अंधेरो से आशनाई है अपनी
बिछड़ रहे हो ए साल मुझसे
रेख़्ता तेरे रहगुज़र का
किसी दिन दर पर आकर के
'अहद-ए-वफ़ा के नाम पर
'अहद-ए-वफ़ा के नाम पर
मुझे ले गया मजधार तक
फिर फेंक कर पतवार को
कहता बशर' मुझे प्यार कर
वा'दा-ख़िलाफ़ी की सज़ा
देनी है कहकर प्यार से
लहरों में डाल कर मुझे
कहता की जां निसार कर
फ़िराक में ही जिन्दा है बशर'
फ़िराक में ही जिन्दा है बशर'
हरदम अपने जुनून में रहता है
जहाँ में है भी और नहीं भी
ख़्यालों के कूकून में रहता है
इसलिए छुपकर शराब पीता हूँ
लगाकर दिल अपना
दिलकश सहराओं से
बा-चश्म-ए-तर सराब पीता हूँ
चारा-साज़ी छोड़ दी है
मेरी चारागर ने
हिज़्र ओ ग़म का अज़ाब पीता हूँ
कसमें दे रखीं है मुझको
मेरी शरीक़ ए हयात
फिर भी ये शय ख़राब पीता हूँ
मुझको शरीफ़ समझते है
सारे शहर के लोग
इसलिए छुपकर शराब पीता हूँ
रवा था सफ़र कश्ती का
रवा था सफ़र कश्ती का
मोहब्बत के समंदर में
ना दानिस्ता अपने माझी से
दिल ने की बेबफ़ाई है
लरज़ते होठों से मुसलसल
सदायें देता रहा फिर दिल
ख़ुदा-ओ नाख़ुदा ने मिलकर
दिल की कश्ती डुबाई है
न विसाल ए यार है हासिल
न विसाल ए ख़ुदा ही दिल को
'अहद दोनों से न निभाने की
इस दिल ने सजा पाई है
लरज़ते - कांपते
मुसलसल -लगातार
सदायें - आवाजें
विसाल ए यार -अपने प्रिय से मिलन
ना दानिस्ता - बेपरवाही से, बे जाने-बूझे
'अहद -Promise
माफ़ कर मुझको ख़ुदा तुझसे रफ़ाक़त की नहीं
बचपन से मुलाकातें होती है
चुराया दिल किसी ने तो
चुराया दिल किसी ने तो
किसी ने बटुआ मारी
जिसे जो चाहिए था
ले गया वो शय हमारी
हुनर में दोनों थे माहिर
गज़ब की थी तैयारी
एक की रस्म ए यारी
दूजे की होशियारी
यूँ मिलकर बेक़रारी
सुकूं देना ख़ुदा उनको
दुआ ये है हमारी
इस दिल से चाहत आपकी
हो चुकी इस दिल को मेरी
अब है आदत आपकी
जाने क्यू जाती नहीं है
इस दिल से चाहत आपकी
अश्क बनकर ख़्वाहिशें भी
बरस जाती है इन आँखों से
उमड़ आते है यादों के बादल
जब बे-निहायत आपकी
है सब इनायत आपकी
करती है दिल की क़लम
हर पल इबादत आपकी
बुद्धि से कर ली परिक्रमा
बुद्धि से कर ली परिक्रमा
माता गौरी पिता महेश की
इसीलिए तो सबसे पहले
होती है पूजा श्री गणेश की
बिघ्नहर्ता कर दो निवारण
जीवन के हर कलेश की
आओ मिलकर करे बंदना
रिद्धि -सिद्धि श्री गणेश की
बंदा-पर्वर इश्क़ का
हो अभी नए मुसाफ़िर
तुम बशर' राह ए इश्क़ की
ये बात मुझको कह रही
रह रह के नाराज़गी तेरी
बंदा-पर्वर इश्क़ का
दिल होता है महबूब का
सर झुका सज़दा तू कर
दिखला फ़क़त दीवानगी तेरी
फ़ना के बाद ही इश्क़ तुझको
फ़ना के बाद ही इश्क़ तुझको
फ़रिश्ता कह के पुकारा गया
पहले बे-रहम इस ज़माने में
तुझे मक़्तलों से ही गुजारा गया
जिनको समझा था राहत ए जां
जिनको समझा था राहत ए जां
देने वो मुझको आज़ार आये
सुनकर मेरी अब दर्द ए वफ़ा
कुछ उनको भी क़रार आये
हम अहल ए दिल के नसीबों में
फ़क़त दर्द भरे किरदार आये
चाहत के काँटों में लिपटे
दिल- ग़िरफ़्ता हम बेज़ार आये
लिखे जो ग़म मोहब्बत के
कितने फिर ग़मख्वार आये
शे'र ओ सुख़न के ज़ानिब से
दिल के सारे बीमार आये
ख़ुदा तू कभी मिल जाता था
फिर एक बेटी के लहू से
ये वतन लहूलुहान है
खो रही इसकी बेटियां
ये बैचेन है परेशान है
मर गई है इंसानियत कहीं
आज मर गया इंसान है
चलती फिरती लाशें है सब
सारा शहर लगता शमशान है
सरहद को तेरे छू न सके
सरहद को तेरे छू न सके
कोई नफ़रत भरी निगाहों से
बेटियां तेरी महफूज़ रहें
हर जुर्म की बलाओं से
जाये न बहारे कभी
तेरी महकी फ़ज़ाओं से
अम्न की खुशबु बहे
हरपल तेरी हवाओं से
ए मेरे प्यारे वतन
हम ग़ुल तेरे तू हमारा चमन
क़सम ले हम तिरंगे की
मिलकर रहेंगे अहल ए वतन
कैसी रक्षा कैसा बंधन
रो रहा है दिल मेरा
क्या क्या गुजरी होगी
एक बहन पर उस रात को
कैसी रक्षा कैसा बंधन
जब वतन का दिल जल रहा
उस बहन के क़ातिलों को
मिटा देने को दिल मचल रहा
घूमते हो भेड़ियाँ
जहाँ आदमी के भेष में
कैसे बंधे रक्षा सूत्र
कोई बहन अपने देश में
अफ़सोस जिस वतन की
सरहदे इतनी महफूज़ है
आज उसकी बेटियां
यहाँ क्यू नहीं महफूज़ है
है कसम मेरी हर बहन को
न किसी भाई का इंतज़ार कर
खुद को तू रणचंडी बना
और दरिंदगी का संहार कर
वतन की बेटियां खो जाएगी
नूर तुझमे है कि जैसे
शायरी नूर तुझमे है कि जैसे
शय कोई खुदाई हो
अहल ए दिल अहल ए नज़र
तुम आसमां से आई हो
ग़ालिब की हो कोई ग़ज़ल
तुम मीर की रुबाई हो
ग़ुल हो या गुलशन हो तुम
या कली बरनाई हो
वहशत ए दिल हो मेरी
या मेरी तन्हाई हो
छू भी लूँ तुझको जरा
पर हुस्न तुम पराई हो
हयात है आँखों में तेरी
मेरी नज़र की बीनाई हो
बनके तुम लफ़्ज़ ए मोहब्बत
ग़ज़लों में मेरी समाई हो
आसमां की ऊंची उड़ानों में
आसमां की ऊंची उड़ानों में
मेरे पाँव जमीं से उखड गए
ए जिंदगी तेरी रेस में
कई दोस्त मुझसे बिछड़ गए
दिल की हसीं वादियों में
सफ़्हा- सफ़्हा रिसाले यादों के
सफ़्हा- सफ़्हा रिसाले यादों के
मेरे कमरे में बिखरने लगे
गुजरे लम्हे विसाल ए यार के
सामने नज़रों के गुजरने लगे
जख्म सारे जो दफ़्न थे मिले
राह ए मोहब्बत में दिल को
बारिश के इन झोकों से
दिल पर फिर उभरने लगे
चराग़ जलता रहा तनहा
मेरे कमरे का रात भर
रफ़्ता रफ़्ता वो अश्क बनकर
मेरे आँखों से उतरने लगे
सरहदों के पासबाँ का बस यही है दास्तां
सरहदों के पासबाँ का
बस यही है दास्तां
सरजमीं के वास्ते वे
छोड़ जाते है जहां
वतन ही उनका इश्क़ है
वतन ही उनका प्यार है
शहीदों के फ़ेहरिस्त में
नाम जिनका शुमार है
सज रहा होता है जब
तिरंगे से उनकी चिता
मौन होकर देखता वक़्त
रो रहा होता ख़ुदा
दिल में उनके सरफ़रोशी
जान ओ तन करते फ़िदा
इतिहास के पन्नो में अमर
अपनी छोड़ जाते है निशां
नमन करे हम इन शहीदों को
शहर ए उम्मीद में बशर'
शहर ए उम्मीद में बशर'
जिंदगी की रफ़्तार बहुत है
एक दूजे से आगे निकलने में
यहाँ सब बेक़रार बहुत है
सुकून ए दिल का कोई मंज़र
दूर दूर तक नहीं दीखता यहाँ
मुसलसल ख़्वाहिशों के क़फ़स में
जिंदगियां यहां गिरफ्तार बहुत है
सदाए जो भी तुझे देता हूँ दिल से ए दोस्त
सदाए जो भी तुझे
देता हूँ दिल से ए दोस्त
बे-जान इन पहाड़ों से
टकरा के लौट आती है
ग़ुम हो तुम इन हसीं
वादियों में जाने कहाँ
हवा में खुशबू मुझे
तेरी सम्त खींचे जाती है
एक बुत से इश्क़ कर के
एक बुत से इश्क़ कर के
तनहा हूँ बुतक़दे में
ज़ाम ए अश्क पी रहा हूँ
वहशत के मैक़दे में
दर्द है दिल का
एक लम्हा हूँ वक़्त का गुज़र जाऊंगा
तू समंदर है ग़र तो अपनी लहरों में
तू समंदर है ग़र तो
अपनी लहरों में
समां ले मुझको
बेताब दरिया हूँ
मुझको बेशक़
ख़ुद सा तू खारा कर दे
पर तू माझी है ग़र मेरा
तो दरिया के इस तलातुम से
मेरे इस कश्ती ए दिल को
महफूज़ सा तू किनारा कर दे
दिल को राहत मिले ग़र
दिल को राहत मिले ग़र
चाक दिल ओ जां हो जाये
मेरी क़लम को 'अता फ़क़त
उसकी दर्द ए वफ़ा हो जाये
लाज़िम है इज़्तिराब ए दिल
मेरे शे'र-ओ-सुख़न के लिए
मुझको डर है कहीं मेरी
ये वहशत न फ़ना हो जाये
नज़रे मिली जो आपसे
नज़रे मिली जो आपसे
तो हमने शऱाब छोड़ दी
ज़ाम ए इश्क़ के जुनूं में
हमने शय ख़राब छोड़ दी
एक ही तो ऐब थी उसकी
ख़्याल ओ ख़्वाब छोड़ दी
इश्क़ मेरा इश्क़ न सही
नज़रों में आपके फ़क़त
इज़्तिराब ओ वहशत ही सही
पैमाना ए इश्क़ टुटा जब
हमने दिल ए बेताब तोड़ दी
सदियों का रिश्ता है कुर्सी का हम इंसानों से
सदियों का रिश्ता है
कुर्सी का हम इंसानों से
कटता है जब जंगल, कुर्सियां
बरसती है आसमानों से
कुर्सी में अकड़ है
कुर्सी में पकड़ है
चिपक जाती है बदन से
जाने कौन सी जकड़ है
कुर्सी का तो मानो जैसे
खेल ही निराला है
नहीं जान पाता है किस्मत
खुद कुर्सी को बनाने वाला है
यूँ तो तमाम फर्नीचर ही
बनती है उस लकड़ी से
ताकत जितनी कुर्सी में है
दूसरों में कहाँ होती है
दूसरे फर्नीचर तो आराम
कर भी लेते है यदा कदा
मगर भाग दौड़ के जिंदगी में
ये कुर्सियां कहाँ सोती है
कुर्सियां डराती है
कमजोर और गरीबों को
ये साथ में बिठाती है
बलवान और अमीरों को
दर्शन देती है कुर्सियां
हमेशा नए नए ठिकानों में
उड़ते रहती है कुर्सियां
हमेशा बैठकर बिमानों में
वक़्त आने पर गरीब खानों में
सदियां गुजर गई मगर कुर्सी का
इंसा आज भी वैसा ही दीवाना है
इसीलिए तो कहता हूँ कुर्सी का
हम इंसानो से रिश्ता बहुत पुराना है
मुसलसल खोते रहे कभी
मुसलसल खोते रहे कभी
खोकर फिर तुझे पाते रहे है हम
अपने ख्वाबों ख्यालों में यूँ ही
तुझे अपना बनाते रहे है हम
दर्द ओ ग़म के सफ़र से मैं गुजरता चला गया
दर्द ओ ग़म के सफ़र से मैं
गुजरता चला गया
वो शख़्स दिल से रफ़्ता रफ़्ता
उतरता चला गया
ख़्वाबों का महल नज़रों के आगे
बिखरता चला गया
यादों के सैलाब मकां ए दिल में
भरता चला गया
बे-दर-ओ-दिवार मकां है इस दिल का
बे-दर-ओ-दिवार मकां है इस दिल का
कोई भी कभी भी आता-जाता रहता है
सुकुन ए दिल तो पहले ही चोरी हो गई
अब तो मेरी नींदे भी उडाता रहता है
तू न रु ब रु न ही गुफ़्तुगू
तू न रु-ब-रु न ही गुफ़्तुगू
फिर भी रहे संग तू ही तू
हर वक़्त काबिज़ दिल पे
है, तेरी जुस्तुजू तेरी आरज़ू
निहत्थों पर गोलियां चलाकर
निहत्थों पर गोलियां चलाकर
बहादुरी क्या तुम दिखलाते हो
अपने आने वाले पीढ़ियों को
बस खून बहाना सिखलाते हो
रोटियों को तरसते है आवाम तेरे
तुम फिर भी आतंक में डुबे हो
बढ़ते भारत के हर एक कदम से
दिल में नफ़रत के रखते मनसूबे हो
पूरी दुनिया को क्या मुंह दिखलाओगे
नापाक़ मंसूबे ग़र रखोगे दिल में
तो तुम ख़ुद ब ख़ुद मिट जाओगे
दश्त-ओ-सहरा में दिन रात चल रहा हूँ मैं
दश्त-ओ-सहरा में दिन रात चल रहा हूँ मैं
बरसते आब मैं हूँ फिर भी जल रहा हूँ मैं
ग़मों ने मुझको संभाला है बड़ी मुश्किल से
शब् ए तन्हाई के दामन में पल रहा हूँ मैं
ये क्या कि नींद आ रही है मुझको अब तेरे बिना
लम्हा लम्हा सिराज सा अपने लौ में पिघल रहा हूँ मैं
कुचा ए इश्क़ से ख़ामोश गुजर जाता हूँ मैं
कुचा ए इश्क़ से ख़ामोश
गुजर जाता हूँ मैं
मुकर जाता हूँ मैं
लफ़्ज़ों में बयां कर नहीं
पाता हूँ जब दिल की बातें
अश्क़ बनकर अपने आँखों से
उतर जाता हूँ मैं
किताब ए दिल को जितना
ही समेटना चाहता हूँ
सफ़्हा -सफ़्हा सारे कमरे में
बिखर जाता हूँ मैं
आइना ए दिल मेरा है
आइना ए दिल मेरा है
अक्स ए ज़माल उसका है
हर्फ़ दर हर्फ़ लफ्ज़ मेरे है
दौर ए हर्फ़ सारा ख़याल उसका है
जज़्बात दिल से निकलते है मेरे
यूँ तो शे'र-ओ-सुख़न के ज़ानिब
नक़्श ए क़लम ए दिल में मगर
पोशीदा सारा कमाल उसका है
मैंने दर ए दिल पे उसका इंतज़ार लिखा है
मैंने दर ए दिल पे
जिसने मेरे इस दिल पे
बेक़रार लिखा है
तक़दीर ने दोनों का अज़ब
क़िरदार लिखा है
उसके नज़रों में मुझे
गुनहग़ार लिखा है
और मेरे नज़रों में उसे
सितमगार लिखा है
हर तरफ हर जगह जब शहर ही बसाओगे
हर तरफ हर जगह
जब शहर ही बसाओगे
कंक्रीट के जंगल में फिर
ठंडी हवा कहाँ से लाओगे
मुझको ऐसा लगता है शायद
शजर आसमां पर तुम लगाओगे
फिर ठंडी हवा खाने के लिए
बशर तुम रॉकेट से वहां जाओगे
न ग़ुल से है निस्बत न गुलज़ार से है
न ग़ुल से है निस्बत
न गुलज़ार से है
मसअला मेरा तो फ़क़त
दिल ए बेक़रार से है
अहवाल दिल का बयां
कर चूका लफ़्ज़ों में बहुत
सुख़न फ़हम है वो
हाल ए दिल क्या समझे
राब्ता उसका फ़क़त
मेरे अब अशआर से है
मैं जानता हूँ कि मेरे जिस्म में
मैं जानता हूँ कि मेरे
जिस्म में क़तरा - क़तरा
कुछ दिनों में यूँ भी
तुम फ़ना हो जाओगे
रग़ों में दौड़कर मगर
किसी अनजान के तुम
किसी जिंदगी के लिए
मेरी दुआ हो जाओगे
मेरे देश को न मज़हबी दीवार दे कोई
मेरे देश को न मज़हबी दीवार दे कोई
शहर- शहर दंगे न बलात्कार दे कोई
हर शख़्स के हाथों में रोजगार दे कोई
शहीदों के गुलिश्तां को बहार दे कोई
प्यास आँखों में भरकर पानी देखूँ
प्यास आँखों में भरकर पानी देखूँ
दिल है कि दरिया का रवानी देखूँ
जिस्म के सरहदों के पार जाकर
चश्म-ए-दिल तुझको रूहानी देखूँ
बदलते मौसम की तरह निगाहें भी बदल जाती है
बदलते मौसम की तरह
निगाहें भी बदल जाती है
मंज़िलों के जुदा होते ही
राहें भी बदल जाती है
तेरा ख़ुदा मेरे ख़ुदा से जुदा है क्या
तेरा ख़ुदा मेरे ख़ुदा से
जुदा है क्या
फिर क्यू दीवारे है दरम्यां
ये वाक़्या है क्या
मंदिर में ख़ुदा है
तो फिर मस्जिद में कौन है
ग़र सारे ही उसके दर है
तो मसअला है क्या
आफ़ताबों ने तो जला दिए मकां दिल के
आफ़ताबों ने तो जला
दिए मकां दिल के
एक दीया ने मेरे घर
को रौशनी दी है
समंदरों ने तो मुसलसल
मुझको प्यासा रखा
एक दरिया ने फिर
नई जिंदगी दी है
राह ए जिंदगी में ग़र मुझे हम-नवा करे कोई
मैक़दे में सारी रात गुजरी
तृषणगी ए ज़ाम ए निग़ाह
अपने औज ए आरज़ू पे थी
अफ़सोस नज़र ए साक़ी
मगर ख़ुम-ओ-सुबू पे थी
मैक़दे में सारी रात गुजरी
फिर भी बशर' तुम प्यासे रहें
तुम जाम-ब-कफ़ बैठे ही रहें
और पैमाना ए दिल ख़ाली ही रहा
अपने इस दिल को आइना मैं कर लूंगा
अपने इस दिल को
आइना मैं कर लूंगा
ए दोस्त तुम पत्थर
दिल से मारो तो सही
रास्ते ही रहनुमा होते है
रास्ते ही रहनुमा होते है
तन्हा मुसाफ़िर के
एक मील का पत्थर भी
काफ़ी है रहबरी के लिए
हो रहा है दिल किसी का रफ़्ता रफ़्ता जाने क्यू
इश्क़ को रब की दुआ
समझा इबादत की तरह
पढ़ लिया एक किताब ए दिल
जो हमने आयत की तरह
ज़ीस्त थी बेरंग अपनी
ग़ुम अंधेरों में कहीं
नूर से रौशन हुआ दिल
ख़ुदा की रहमत की तरह
जुनून-ए-परस्तिश में
जुनून-ए-परस्तिश में
हुजूम दर पे ख़ुदा के
यूँ बेतहाशा न बना
बशर' इबादत कर
चंद तस्वीरों के लिए
ख़ुदा के घर को
यूँ तमाशा न बना
बड़ी बेताबी है दरिया को
समंदर से मिलने की
मगर जब तलक वो दरिया है
आब ए हयात है उसमे
जले की दफ़्न हो, एक दिन बदन तो ख़ाक होनी है
जले की दफ़्न हो, एक दिन
बदन तो ख़ाक होनी है
मसअला पैकर का है वो जाने
क़फ़स से रूह तो रिहा होनी है
ख़्वाहिश ए दिल है कि
सबा में घुल के
मेरी ख़ुश्बू फ़िज़ा हो जाये
इससे पहले की तार टूटे
मुसलसल इन सांसो का
जाँ-ब-लब हो हम और
ये जिस्म बेजाँ हो जाये
हसरत ए दिल है कि
ढलकर मै ख़ुद ब ख़ुद
हसीं जज्बातों में
हसीं ग़ज़लों में और
हसीं नग़्मातों में
तमन्ना ए दिल है बशर'
हर्फ़-दर-हर्फ़ उतरकर
दिलों में अहल-ए-दिल
के फ़ना हो जाये
इन किताबों से जी भर चूका है मेरा
इन किताबों से जी भर चूका है मेरा
अब कोई चेहरा मिले तो पढ़कर देखूं
तुम्हारे शहर की आब-ओ-हवा बहुत अच्छी है
तुम कहो तो कुछ दिन ठहर कर देखूं
लफ़्ज़-ए-मोहब्बत लिखी है मेज़ पर रखी रिसाले पर
डर कर ही सही दिल कहता है कि पढ़कर देखूं
मौजे ही मौजे लिखे है इश्क़ के समंदर में
ख़्वाहिश-ए-दिल के लिए इसमें उतरकर देखूं
हर्फ़-ए-दु'आ ही निकलती थी
हर्फ़-ए-दु'आ ही निकलती थी
माँ ग़र ख़फ़ा भी होती थी
और कभी मार देती यूँ ही मुझे
तो माँ भी मेरे संग रोती थी
एक बे-हुनर इंसान को भी इतनी शोहरत दी है
एक बे-हुनर इंसान को भी
इतनी शोहरत दी है
तुम्हारे शहर ने हद से ज्यादा
मुझे मोहब्बत दी है
किसी के इश्क़ ने मुझको बचाये रखा है
किसी के इश्क़ ने मुझको
बचाये रखा है
मगर ज़माने भर से रिश्ता
छुड़ाए रखा है
तमाम 'ऐब भी उसके
हुनर से दीखते है
सबने आँखों पे कोई चश्मा
लगाए रखा है
लाज़िम है उसका एक दिन
टूटकर बिखर जाना
हर वख़त अपने दिल को आइना
बनाये रखा है
अँधेरे उसके दर से
मायुश लौट जाते है
घर के एक कोने में कहीं
उसने शमा जलाये रखा है
हिंदी तो मेरी माँ है
हिंदी तो मेरी माँ है
पर उर्दू मोहब्बत है मेरी
अंग्रेजी,तुझसे भी क्या गिला
बन गई तू भी जरुरत है मेरी
तमाम रिश्तों से मिली इस
तमाम रिश्तों से मिली इस
दिल को रुसवाई चली आती है
शाम होते ही मकां ए दिल में
ग़म-ए-तन्हाई चली आती है
दर ब दर सारा दिन गुजार कर
फिर चंद उम्मीदों का गला घोंटकर
ख़्वाहिशों के बोझ तले जिंदगी
यूँ ही थकी - थकाई चली आती है
हर प्यासे की प्यास
हर प्यासे की प्यास
बराबर समझती है
किसी दरिया को कोई
मज़हब नहीं होता
खेत खलिहानों में ये
फर्क नहीं करते है
किसी बादल का कोई
मज़हब नहीं होता
गिराकर फिर उठाना चाहता है
गिराकर फिर उठाना चाहता है
आख़िर वो क्या जताना चाहता है
बाद फिर अपना मुझे बनाएगा
पहले क्यू फिर मिटाना चाहता है
जो उनके दिल को सुकूं दे सके एक पल के लिए
तुझ बिन जीवन का सुना है मधुबन मेरे मुरलीवाले
मेरे मुरलीवाले
तुझ बिन जीवन कासुना है मधुबन
मेरे मुरलीवाले
छोड़ दिया इस
जग ने मुझको
अब हम तेरे हवाले
भब सागर की ऊंची लहरे
जीवन का नैया डोले
सांसो की पतवार चल रही
हर पल हौले- हौले
इस तूफां से मेरे गिरधर
तू ही मुझको निकाले
खो गया जो ख़ुद ब ख़ुद किसी शय को पाने के लिए
खो गया जो ख़ुद ब ख़ुद
किसी शय को पाने के लिए
लोग उस बन्दे को अब
पागल समझते है यहाँ
समन्दरों से उठता है जो
आफ़ताब के दहकने से
कुदरत के इस करिश्मे को
बादल समझते है यहाँ
मैंने तो जो भी कहा
सब आपके ही ख़्याल थे
लोग सुनकर के इसे
ग़ज़ल समझते है यहाँ
प्यास को मैंने ही जिन्दा रखा
प्यास को मैंने ही जिन्दा रखा
और इसे मरने न दिया
वगरना मिठास दरिया के
पानी में हद से ज्यादा था
दिल किसी का हो रहा है
दिल किसी का हो रहा है
रफ़्ता - रफ़्ता जाने क्यू
मिट रहा हर फ़ासला है
रफ़्ता - रफ़्ता जाने क्यू
मेरी प्यारी माँ
ममता की मूरत
तेरी सूरत
है दुलारी माँ
मेरी प्यारी माँ
आँचल में तेरे
खुशियाँ मेरे
कितनी सारी माँ,
मेरी प्यारी माँ
ग़म मोहब्बत में मिले जो सब अमानत है मेरी
ग़म मोहब्बत में मिले जो
सब अमानत है मेरी
जज़ीरा ए दिल पे गोया
बिखरे है कई ख़जाने अब
लहरें उठती है जब भी
दिल के समंदर में कहीं
आ ही जाते है बशर'
लब पे कई अफ़साने अब
बेताब तमन्नाओ का पीछा क्यू करे हम
बेताब तमन्नाओ का पीछा क्यू करे हम
तुमसे मिलने का कोई वादा क्यू करे हम
गुनाह-ए-इश्क़ ही तो किया है फ़क़त मैंने
अब हर किसी से जिक्र - चर्चा क्यू करे हम
रेत के घरोंदों की तरह
रेत के घरोंदों की तरह खुद को
तोड़ता और बनाता रहता हूँ
खुद से ही रूठ गया है दिल
अब लोगो को मना- मनाकर
तन्हाई में कहीं बैठकर अब
इस दिल को मनाता रहता हूँ
माना की तुझमें कोई 'ऐब नहीं
माना की तुझमें कोई 'ऐब नहीं
पर ये भी क्या कम है कि
हद से ज्यादा दिल-फ़रेब हो तुम
आसमां पे चमकने के लिए
आसमां पे चमकने के लिए
आफ़ताब को भी रोज जाने
कितनी सीढियाँ चढ़ना उतरना पड़ता है
बशर' ये बाग़ ए बहिश्त नहीं
दश्त-ओ-सहरा है कोई
यहाँ खुद को रौशन करने के लिए
हर शय को मुश्किलों से गुजरना पड़ता है
एक अरसे से दो मुल्कों में
एक अरसे से दो मुल्कों में
लम्बी तक़रार चल रहीं है
हथियार बेचने वालों की
अच्छी कारोबार चल रहीं है
इस जहाँ में ख़ुदा का अब कोई पैग़म्बर नहीं आने वाला
इस जहाँ में ख़ुदा का अब
कोई पैग़म्बर नहीं आने वाला
कोई बुद्ध कोई नानक अब
कोई कलंदर नहीं आने वाला
जहाँ वालो अम्न से रहो कि
लड़कर फ़ना हो जाओ तुम
अम्न का राह दिखाने तुम्हे अब
कोई रहबर नहीं आने वाला
आवाम जो थकन के मारे थे
'अवाम जो थकन के मारे थे
बदन के अज़ाबों में सो गए
कुछ मंच से आते मीठे- मीठे से
नए वादों के ख़्वाबों में खो गए
तेरा दर ख़ुदा का दर लगा
तेरा दर ख़ुदा का दर लगा
सर हमने भी झुका दिया
रहबर दिखा तुझमे कोई
रस्ता मै खुद को बना लिया
बुलंदियों पे झुकने का नाम है जिंदगी
बुलंदियों पे झुकने का
नाम है जिंदगी
मंज़िल से पहले न रुकने का
नाम है जिंदगी
गिरना भी ग़र लिखा है
किसी मोड़ पर बशर'
तो हँसते हुए फिर से उठने का
नाम है जिंदगी
मैंने तो मोहब्बत में क़ैद-ए-कफ़स चाही थी
मैंने तो मोहब्बत में क़ैद-ए-कफ़स चाही थी
बेसबब तुम मुझे अब रिहाई क्यू देते हो
ताउम्र तेरा दर्द ग़र लिखू भी तो कभी कम न हो
मेरी क़लम को सुर्ख़ इतनी रोशनाई क्यू देते हो
ए दोस्त तुम्हारी ख़ामोशी कहीं मार ही डाले न मुझे
कि इस चराग़ ए दिल को अब शब् ए तन्हाई क्यू देते हो
तारीफ़ कैसे करूँ उन हाथों का
तारीफ़ कैसे करूँ उन हाथों का
जिसने इतनी प्यारी मूरत बनाई
कितने दर्द सहें पत्थर ने तेशा का
फिर जाकर ख़ुदा की सूरत पाई
नफ़रतों के जद' में है ये सारा जहां
नफ़रतों के जद' में है ये सारा जहां
इसे अम्न-ओ-मोहब्बत ही बचा सकती है
लहरों से नहीं इन कश्तियों को
सिर-फ़िरे, ना-ख़ुदाओ से ख़तरा है
मासूम इन कश्तियों को अब फ़क़त
किसी ख़ुदा की रहमत ही बचा सकती है
रिश्ता कोई भी कैसा भी हो
रिश्ता कोई भी कैसा भी हो
मुझे निभाना नहीं आता
कि कोई ग़र रूठ जाये मुझसे
तो उसे मनाना नहीं आता
ख़ुदा ने दिल तो दिए है बेशक़
धड़कता भी है मेरे सीने में
किसी हसीं दिल से मगर
अब इसे लगाना नहीं आता
सोच लो समझ लो कोई एक इरादा कर लो
सोच लो समझ लो
कोई एक इरादा कर लो
अब आ गए हो महफ़िल में
तो न जाने का वादा कर लो
जज़्बात दिल के दिल तक
यक़ीनन पहुंच ही जायेंगे
गोया अक़्ल को जाने दो कहीं
और ज़रा सा दिल को कुशादा कर लो
हम रिंदों को समझ आती नहीं
हम रिंदों को
किसी वा'इज़ की बातें
हमने तो मोहब्बत को ही
ख़ुदा जाना है
बशर' चाँद को जमीं पर तलाश न कर तू
बशर' चाँद को जमीं
पर तलाश न कर तू
रात- दिन वो फ़क़त
सितारों के साथ रहता है
मैंने ख्वाबों में कई
बार उसे देखा है
गुलों सा दीखता है,
बहारों के साथ रहता है
वो मुझसे दूर जाना चाहती है
बशर' जिंदगी में तो कम-ओ-बेश
तू क़ामयाब हो गया
पर पहला इश्क़ वो तेरा
स्कूलोंवाला ना-क़ामयाब हो गया
तितलियों से अपनी यारी थी
तितलियों से अपनी यारी थी
जुगनुओं से बातें करते थे
चरागों और किताबों से
हम रौशन राते करते थे
मुसलसल नफ़रतों के जद में जा रहा ये सारा जहां
मुझे तलाश है ख़ुद का
मुझे तलाश है ख़ुद का
तू मेरी तलाश न रख
एक सहरा हूँ ग़मज़दा
तू मेरी प्यास न रख
पल दो पल के सफ़र में
यूँ मुझपे बिश्वास न रख
बिछड़ गया जो मैं तुझसे
तो मिलने की आस न रख
हिंदी जितनी हमारी है उतनी तुम्हारी भी है
सुने इस दिल को गुलशन बनाने वाले
सूने इस दिल को गुलशन बनाने वाले
इन आँखों को हसीं ख़्वाब दिखाने वाले
सफ़र में फिर नहीं मिलने-मिलाने वाले
बशर' कहाँ गए वो छोड़कर जाने वाले
चाँद ग़र बाम पर न आये
चाँद ग़र बाम पर न आये
तो दिल बेक़रार हो जाये
सितारों ढूंढ के लाओ
उसका दीदार हो जाये
इशारों ही इशारों में
कोई इज़हार हो जाये
मेरी भी ईद मन जाये
ये दिल गुलज़ार हो जाये
रु-ब-रु उसने ही कराया था ख़ुदा से
रु-ब-रु उसने ही कराया था ख़ुदा से
ग़र माँ न होती तो इल्म ए ख़ुदा भी न होताहोश कहाँ रहता है
होश कहाँ रहता है
कोई फर्क फिर समझने का
पेट की आग से जब
रूह दहक सी जाती है
खुशबू गुलाबों की अमीरों
को मुबारक़ हो जनाब
अरे, मुफ़लिस को तो
रोटी की महक ही भाती है
मेरे मालिक,तेरा शान-ए-करम ही तो है
लहरों पे चल रहा हूँ ये तेरा रहम ही तो है
हो रहा हूँ जो भी कुछ, है इनायत बस तेरी
मैं ही कर रहा हूँ सब, ये मेरा वहम ही तो है
बोल नफ़रतों के हर वक़्त
बोल नफ़रतों के हर वक़्त
गुलशन को सुनाते क्यू हो
मश्क़-ए-सियासत के लिए
भाई को भाई से लड़ाते क्यू हो
ख़ुदा ने बनाया है जिन
चराग़ों को रौशनी के लिए
बशर' उन्ही चरागों से तुम
बस्तियों को जलाते क्यू हों
दिल के क़लम से तेरा अक्स
वक़्त के पन्ने पर जंग का
वक़्त के पन्ने पर जंग का
क्यू इतिहास लिख रहे हो
बशर' एक लम्हे में सदियों का
क्यू बिनाश लिख रहे हो
यूँ तो तमाम जिंदगी
यूँ तो तमाम जिंदगी
ही कटी राह-ए-वफ़ा में अपनी
पर तेरे हिज़्र में जो गुजरी
वो क़ामयाब हुई
लुटाया अब तलक जो उसपे
लुटाया अब तलक जो उसपे
मेरी वो दीवानगी वापस कर दे
जैसे किसी बेज़ान पैकर में
कोई सांसों की रवानगी वापस कर दे
सुकून ए दिल के खातिर कोई
अब कह दे उस सितमग़र से
वो अपनी मोहब्बत ले ले मुझसे
और मेरी आवारगी वापस कर दे
कर रहा है दिल को कोई
कर रहा है दिल को कोई
पायमाल रफ़्ता - रफ़्ता
हो रही है ग़ज़ल - गोई
बेमिसाल रफ्ता- रफ्ता
बशर' जमीं से बेशक़ रिश्ता रखना
बशर' जमीं से बेशक़ रिश्ता रखना
हमेशा मगर आसमानों से फ़ासला रखना
ग़र आसमानों से उलझ जाओ कहीं फिर
ख़ुदा पे यकीं और खुद पे हौसला रखना
मिलेगी धुप भी सफ़र में
कोई ताबीज़ कोई नुस्ख़ा
कोई ताबीज़ कोई नुस्ख़ा
अब काम नहीं आता है
तुम्हारे बग़ैर इस दिल को
अब आराम नहीं आता है
याद कर लिया है तुझे
इस दिल ने आयत की तरह
तेरे यादों के बग़ैर
अब कोई शाम नहीं आता है
इश्क़ तो बेबज़ह ही
बदनाम है इस जमाने में
अरे हुस्न पर तो कभी
कोई इल्ज़ाम नहीं आता है
न तवज्जोह की ख़्वाहिश
न तवज्जोह की ख़्वाहिश
न तग़ाफ़ुल का ग़म
न यूँ बातों - बातों में
में हो जाते बरहम
हुजूम-ए-दहर में भी
है कहीं तनहा से हम
पानी के बुलबुले को
अब कैसा पेच-ओ-ख़म
ये सच है कि सरजमीं के ज़र्रे- ज़र्रे में
ये सच है कि सरजमीं के ज़र्रे- ज़र्रे में
यहाँ सभी के पुरखों का लहू मिला है
ग़वाह है इस बात के इतिहास के पन्ने
कि आज़ादी सदियों के गुलामी के बाद मिला है
यकीं माने की ख़ुशनसीब है हम सब
कि ख़ूबसूरत सा ये मुल्क हमे आज़ाद मिला है
फिर क्यू हवाएँ नफरतों के यहाँ बहाते है लोग
ख़बर फिर छपी है कि किसी का घर जला है
अहल-ए-दिल से मेरी आवाज गुजर जाने दो
अहल-ए-दिल से मेरी आवाज
गुजर जाने दो
घुल के हवाओं में इसे
दूर तर जाने दो
चंद मोहलत है मिली ग़ुल को
मुस्कुराने के लिए
इसकी खुशबू फ़ज़ाओं में
बिखर जाने दो
मर्ज़-ए-ला-दवा है ये
मरीज़-ए-'इश्क़ की शिफ़ा
फ़क़त निगाह-ए-यार में है
तुम तो रहने दो मुझे
चारा-गर जाने दो
आफ़ताब ए दोपहर में
एक थका मुसाफ़िर हूँ
कुछ देर ही सही
शज़र अपनी छांव में
ठहर जाने दो
यहाँ कौन जानता है
यहाँ कौन जानता है
जो ख़ुदा का तुझे पता दे
बशर, ये सारे दर उसी के है
तू किसी दर पे सर झुका दे
हमसे कभी वफ़ा जाती नहीं
हमसे कभी वफ़ा जाती नहीं
उनसे कभी जफ़ा जाती नहीं
एक मुद्दत से उनके दिल तक
इस दिल की सदा जाती नहीं
तुझसे मिलने की चसक है दिल में
तुझसे मिलने की चसक है दिल में
ये बात कहने की झिझक है दिल में
तेरी मोहब्बत की महक़ है दिल में
फिर भी जरा सी क़सक है दिल में
न गुलों में मिलता है
न गुलों में मिलता है
न बहारों में मिलता है
न गुलबदन से चेहरों
न महकारों में मिलता है
मेरा महबूब तो मेरे
तन्हाई का हम साया है
ख्यालों में आता है और
मेरे अशआरों में मिलता है
दिलों में सबके ख़ुशी हो
दिलों में सबके ख़ुशी हो
कोई ग़म न मलाल हो
रंगों के इस त्यौहार में
सबके हाथों में गुलाल हो
सारे रंग मोहे फीको लगो है
अपने दिल के जज़्बात
अपने दिल के जज़्बात
उसे कह भी न सका था मै
देखा जो उसको मैंने तो
उन निगाहों में खो गया
उसके दर से जब उठा
तो मैकदों ने बुला ली
रात घर को जब चला तो
घर राहों में खो गया
रंग ए मोहब्बत से
रंग ए मोहब्बत से
तर ब तर हो गया दिल
कू-ए-यार की होली में
बेरंग पैरहन ए दिल पर
गुलाबी रंग चढ़ गया
रंग ए बहार की होली में